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युगप्रवर्तक डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर

मनवेल शेळके by मनवेल शेळके
April 14, 2023
in देश विदेश, महत्त्वाच्या बातम्या, विदर्भ, संपादकीय, साहित्य /कविता
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युगप्रवर्तक डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर
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✍️लेखिका: सरिता सातारडे, राह. नागपूर

महाराष्ट्र संदेश न्युज ! ऑनलाईन:- दिनविशेष डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जयंती विशेष:- भारतीय संविधान के निर्माता, विश्ववंदनीय, जिन्हे ‘सिम्बॉल ऑफ द नाॅलेज’ कहा जाता है डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकरजी की 132 वी जयंती की उपलक्ष में सभी प्रबुद्ध भारतीय जनता को हृदय की गहराई से अनेकानेक बधाई! सबसे पहले हम सब महापुरुष की जयंती क्यू मनाई जाती है? वो जरा समज ले!

हम सभी को जीवन में प्रेरणा देनेवाले महापुरूष के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिये हम सब जयंती मनाते है| फिर प्रश्न ये भी आता है कि महापुरुष किसे कहा जाता है? तो जिन्हें हम महापुरुष कहते है या महापुरुष कहके मान्यता देते है उनके कृती और कार्य से नया इतिहास लिखा जाना जरूरी होता है| समाज में व्याप्त हर तरह की शोषणव्यवस्था को समाप्त करने के लिये वो व्यक्ती कटिबद्ध होना चाहिऐ ऐसी अपेक्षा व्यक्त की जाती है| जो वर्ग शोषण व्यवस्था का समर्थक होता है वो तो चाहता ही है की ऐसीही शासन व्यवस्था शुरू रहे और इसके लिये वो धर्म और संस्कृती का हवाला देकर गरीब, निरपराध या जिनमें सोचने और समझने की क्षमता ना हो ऐसे लोगोंको भ्रमित करते है| इस तरह की परिस्थिती में जो महापुरुष बनके इस क्षितिज के पटल पर आते है और ऐसी शोषनकारी व्यवस्था को बदलने की भूमिका लेते है| ऐसी व्यवस्था बदलने के लिये वो अपनी फॅमिली की पर्वा न करते हुऐ भी जनमानस को बदलने का बिडा उठाते है और इस दमनकारी यंत्रणा की जडे हिला देते है सही मायने में उन्हे ही ‘महापुरुष’ कहा जाता है और डाॅ बाबासाहेब आंबेडकरजी का संपूर्ण जीवनपट या जीवनप्रवास अगर हम देखते है उसे समझते है तो सही मायने महापुरुष कौन है और महापुरुष की परिभाषा किसे कहते है उसे दुसरी और खोजने की हमे जरूरत ही महसूस नही होती है!

जो महापुरुष होते है उनके उपर किसी एक वर्ग का, जाती का, समाज का या राजकीय पक्ष की मालकी नही होती है क्योंकि उनका व्यक्तित्व समूचे विश्व के लिये प्रेरणादायी होता है|
और इसलिए ‘कानून हमारे बाप का’ ऐसा अगर कोई कहता है तो वो सर्वथा गलत है क्योंकि भारतीय संविधान संपूर्ण भारत के जनता का है| और संविधान के प्रस्तावना की शुरूवात ही ‘हम भारत के लोग’ इस पंक्ती के साथ शुरू होता है.. इसका मतलब ही होता है इस संविधान पर संपूर्ण भारत की जनता का अधिकार है| डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकरजी लोकशाही की व्याख्या में है,
“रक्तपात के बिना लोगोंके सामाजिक और आर्थिक जीवन में क्रांतीकारी बदलाव लानेवाली शासनप्रणाली को लोकशाही कहते है| भारतीय संविधान के माध्यम से इस देश में उनको सामाजिक और आर्थिक लोकशाही प्रस्थापित करनी थी.. लोकशाही की प्रस्थापना करते वक्त धर्म, पंथ, जात ये लोकशाही को अवरूध्द करनेवाले समाजविघातक शक्ती है इसलिए उन्होने इस देश में प्रजासत्ताक शासनप्रणाली का निर्माण किया जिसका मूलाधार ही स्वातंत्र्य, समता, न्याय ओर बंधूता है| भारतीय संविधान के माध्यम से ये चारों महामूल्य जनमानस में रूजे और लोकशाही सुचारू रूप से चले यही उनकी चाहत थी|

डाॅ बाबासाहेब आंबेडकर जी का संविधान निर्माण करने का दृष्टिकोन इतना उदात्त होने के बावजूद आज संविधान खतरे में है ऐसा क्यू कहा जाता है?
डाॅ बाबासाहेब आंबेडकर स्पष्ट रूप से कहते है,
“संविधान कितना भी अच्छा हो उसे लागू करने वाले लोगों की नियत अगर सही नही है तो संविधान को धोका हो सकता है!”

आज हमारे देश का चित्र हम देखते है तो धर्मांध शक्ती का हैदोस यहा दिखाई पडता है| लोगोंको क्या खाना, क्या पहनना इसके उपर भी निर्बंध.. देश की सरकारी मालमत्ता को बेचना, संसद मे विरोधी पक्ष के लोग बोलना नही चाहिऐ करके माईक बंद करना जिसे हम ‘म्युट डेमाक्रासी’ कहते है अगर ये सब है तो इसे लोकतांत्रिक प्रणाली तो नही कहा जा सकता है!

न्यायपालिका, कार्यकारी मंडल, विधिमंडल और मिडिया ये लोकशाही के चार आधारस्तंभ है| इनके उपर लोकतांत्रिक प्रणाली खडी है और ये चारो स्तंभो का अलग अलग कार्य है लोकशाही को सुचारू रूप से चलाने के लिये ये सभी का एकदुसरे के कार्य में दखल न देना जरूरी है लेकिन अगर ये चारों स्तंभ अगर हिलने लगे तो लोकशाही का गिरना तय है|

डॉ बाबासाहेब आंबेडकरजी ने भारतीय जनता को एक प्रकट पत्र लिखा था और उसमें उन्होने लोकशाही सुचारू रूप से चलने के लिये कौनसे आवश्यक दिशानिर्देश है उसका जिक्र किया था..
उनमे से


1)समाज के अंदर सामाजिक विषमता नही होनी चाहिऐ-
समाज में समता का होना अत्यावश्यक है क्यूंकि अगर नाखून जितनी भी विषमता है तो लोकशाही को ध्वस्त कर सकती है| इसलिए राज्यकर्ताओंका पहिला कर्तव्य होता है की समता की प्रस्थापना करना| अगर प्रस्थापित सत्ताधिश ‘सबका साथ और सबका विकास’ कहते है और सिर्फ कुछ लोगों का ही इससे विकास होता है ऐसी लोकशाही की अपेक्षा डाॅ आंबेडकरजी को नही थी|

2)विरोधी पक्ष का मजबूत होना बेहद जरूरी है
जबतक इस देश में विरोधी पक्ष का अस्तित्व है तबतक देश में हुकूमशाही नही आ सकती| लोकशाही के जो विरोधक होते है वो सबसे पहले विरोधी पक्ष को ही खत्म करने के कारस्थान करते है| अभी हमने देखा की हमारे देश में हिडनबर्ग रिपोर्ट के बाद अदानी का मुद्दा मेन है लेकिन विरोधी पक्षनेता बोल ही नही पाये इसलिए संसद में माईक को म्युट करके रखा जाता है.. क्या म्युट डेमाक्रासी से लोकतंत्र बच पायेगा?

3)प्रशासन और कानून के आगे सब समान हो
कानून के आगे सत्ताधारी पक्ष, विरोधी पक्ष, जनता सब समान होना चाहिऐ| कायदा व प्रशासन में सुव्यवस्था ना हो तो सत्ता कुछ विशिष्ट लोगों के हाथो की बटिक है ऐसा समझा जाता है|

4)संवैधानिक नैतिकता –
संवैधानिक नैतिकता का पालन देश के हर नागरिक को करना जरूरी है| मै संवैधानिक नैतिकता का पालन करती हू इसका मतलब मेरे उपर जो संवैधानिक जिम्मेदारी है उसका मै सही से निर्वाह करती हू| लोकशाही मूल्योंका सन्मान करना याने लोगों का सन्मान करना होता है|

5)बहुसंख्य लोगों का अल्पसंख्याक पर दडपण नही होना चाहिऐ –
डाॅ बाबासाहेब आंबेडकरजी कहते है की, भांडवलशाही और ब्राह्मणशाही ये दोनो लोकतंत्र के लिये खतरा है| इस का मतलब सब ब्राह्मण गलत है ऐसा नही तो जो प्रतिगामी व्यवस्था के वाहक है उनके बारे में कहा गया है|जो साधन, संसाधनोंसे वंचित वर्ग है उनके उपर सत्ताधारी वर्ग अगर हुकूमशाही करता है तो लोकतंत्र को खतरा निर्माण होता है|

6)समाज में नितिमत्ता होना बेहद जरूरी है-
लोकतंत्र के मजबूती के लिये नितीमान समाज का होना बेहद जरूरी है. लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब समाज संविधान में संमिल्लित महामूल्ये न्याय, स्वातंत्र्य, समता, बंधूता के अनुसार आचरण करनेवाले हो| जब हम लोकतंत्र की मूल्य समझेंगे तभी लोकतंत्र मजबूत होगा इन सब बातों के लिये नितीमान समाज की आवश्यकता है|

7) लोगोंकी सद्सद्विवेकबुद्धी जाग्रृत हो-
लोकतंत्र की मजबूती के लिये ये सबसे आवश्यक घटक है|अगर व्यक्ती विवेकशील नही है तो लोकतंत्र कमजोर होगा| समाज में अनेक तरह के लोग होते है.. कुछ कमजोर तो कुछ मजबूत.. ये दोन्हो अगर एकदुसरे का हाथ थामे तो इसे कहते है इस जनता के बीच की सद्दसद्विवेकबुध्दी जाग्रृत है.. समाजजीवन में जीते हुऐ एकदुसरे के प्रती संवेदना होना बेहद जरूरी है| डाॅ बाबासाहेब आंबेडकर विवेकवाद का संबध मानवी मन से जोडते है| और ये बुध्द तत्वज्ञान से संबंधित मैत्री भावना आहे| लोकतंत्र की मजबूती के लिये ये सातों बाते अत्यंत महत्वपुर्ण है.. इसलिए सोचे की जिनके हाथ में सत्ता की चाबी थी उन्होंने कौनसी गलतियाॅ की थी.? . या आज इस वक्त भी कौनसी गलतियाॅ हो रही है.? .

हमारा समाज ना.. बहुत सहनशील है.. मुकदर्शक बनके जीना उसको बहुत अच्छा लगता है.. इतना सोचिऐ… आज अगर हम मुकदर्शक बनके रहते है तो अपने आनेवाली नस्लों को हम क्या जबाब देंगे!

डाॅ बाबासाहेब आंबेडकरजी को संविधान के माध्यम से जो कुछ करना था वो कर दिखाया..
आज जो शान से सर उठाकर जीते हो तो उसका एकमात्र कारण भी वो ही है.. तो फिर आज हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी क्या है..
डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकरजी ने समाज संघटन के लिये
1)’समता सैनिक दल’ का निर्माण किया..
2)धार्मिक कार्यक्रम की रूपरेखा के लिये ‘बुध्दिष्ट सोसायटी ऑफ इंडिया’ का गठन किया..
3)राजकीय कार्य के लिये ‘रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया’ का गठन किया.. पिछे मुडकर जरा सोचिऐ.. आजादी के इतने सालों बाद हमारी क्या क्या गलतियाॅ हुई? और गलतियाॅ समझ में आती है तो उसे सुधारने की कोशिश भी कीजीऐगा…

क्रांती और प्रतिक्रांती के खेल को अच्छी तरह से समझ लिजिऐ..
आपकी विरासत क्या है..?
कौन उसको क्षती पहुचा रहा है..?
देश अगर हुकूमशाही के तरफ बढ रहा है तो एक मजबूत लोकतंत्र जो भारतीय संविधान में सम्मिलित है उसका सही से निर्वाह हो ऐसा अगर हम सोचते है भारतीय जनता के बीच ‘सामाजिक ऐक्य’ होना बेहद जरूरी है.. और ऐसा संकल्प हम लेते है तो यही तो संदेश है हमारा डाॅ बाबासाहेब आंबेडकरजी की जयंती मनाने का, नही क्या?

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